रांची: सूरज सिंह मेमोरियल महाविद्यालय, रांची में आज करम पूर्व दिवस पर “करमोत्सव 2025” का सफल और भव्य आयोजन संपन्न हुआ। इस आयोजन का नेतृत्व जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग (नागपुरी, कुड़ुख, मुंडारी) ने किया। पूरा परिसर पारंपरिक गीत, नृत्य और सांस्कृतिक प्रस्तुति से गूंज उठा। स्वागत गीत डॉ. जुरन सिंह मानकी ने प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण के रूप में टी.आर.आई. (जनजातीय शोध संस्थान) के पूर्व निदेशक डॉ. सोमा सिंह मुंडा ने करम कथा का संगीतमय वाचन प्रस्तुत किया। उनकी स्वर लहरी और भावपूर्ण अभिव्यक्ति ने उपस्थित जनसमुदाय को मंत्रमुग्ध कर दिया। मुख्य अतिथि पद्मश्री मधु मंसूरी “हंसमुख” ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा करमा और धर्मा की कथा हमें सिखाती है कि धर्म और संस्कार को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। कर्म ही प्रधान है, और इसी से करम देवता का आशीर्वाद मिलता है। आज की पीढ़ी को अपनी जड़ों से जुड़ना होगा। विशिष्ट अतिथि स्वर कोकिला मोनिका मुंडू ने अपना प्रसिद्ध नागपुरी गीत करम करम के दीना जावा… प्रस्तुत कर छात्रों को झूमने पर मजबूर कर दिया। ख्यातिप्राप्त संगीत निर्देशक तेज मुंडू की उपस्थिति ने भी कार्यक्रम को विशेष ऊर्जा प्रदान की। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. बी.पी. वर्मा ने कहा करम महापर्व झारखंडी जीवन का आत्मसंवाद है। यह केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि श्रम, प्रकृति-पूजन और सामाजिक एकजुटता का पर्व है। करम देवता हमें सिखाते हैं कि सामूहिक श्रम और एकजुटता से ही जीवन सार्थक बनता है। लोककथा के अनुसार, करमा की कर्मनिष्ठा और त्याग से ही समाज में संतुलन और समृद्धि लौटी, जो इस पर्व का मुख्य संदेश है कि कर्म ही सच्चा धर्म है।
इस अवसर पर अनेक शिक्षकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने पारंपरिक नृत्य व गीत प्रस्तुत कर कार्यक्रम को और जीवंत बना दिया। आयोजन की गरिमा बढ़ाने हेतु महाविद्यालय परिवार और विद्वानों की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही। इनमें प्रो. राजेश कुजूर, डॉ. रानी प्रगति प्रसाद, डॉ. सावित्री कुमारी, डॉ. अनिल वीरेंद्र कुल्लू, डॉ. सीमा सुरिन, डॉ. रंजीत कुमार चौधरी, डॉ. रीना कुमारी, डॉ. त्रिभुवन कुमार साही, प्रो. मुकेश उरांव सहित अनेक गणमान्य उपस्थित रहे। समारोह का संचालन डॉ. सुबास साहु (नागपुरी विभाग) ने किया। आखिर में महाविद्यालय परिवार ने यह संकल्प लिया कि ऐसे आयोजन न केवल सांस्कृतिक जड़ों से जुड़ने का अवसर हैं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों तक श्रम, त्याग और सामूहिकता का अमूल्य संदेश पहुँचाने का माध्यम भी हैं।