रांची: रांची विश्वविद्यालय के मुंडारी विभाग में नए विभागाध्यक्ष के रूप में डॉ. बीरेंद्र कुमार सोय ने योगदान दिया है। यह जिम्मेदारी उन्हें प्रो. मनय मुंडा की सेवा-निवृत्ति के बाद सौंपी गई है। विभागाध्यक्ष का प्रभार संभालने के साथ ही विभाग में खुशी और उत्साह का माहौल देखने को मिला। शिक्षकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने उन्हें बधाई देते हुए उनके नेतृत्व में विभाग के शैक्षणिक और शोध कार्यों को नई ऊर्जा मिलने की उम्मीद जताई है।
विभाग को नई दिशा की उम्मीद
मुंडारी भाषा और साहित्य के संरक्षण एवं संवर्धन के उद्देश्य से स्थापित यह विभाग आदिवासी भाषाओं के अध्ययन और शोध का प्रमुख केंद्र रहा है। डॉ. सोय के विभागाध्यक्ष बनने से विद्यार्थियों को न केवल शैक्षणिक अवसर बल्कि शोध कार्यों में भी नई प्रेरणा मिलेगी। आने वाले समय में पाठन-पाठन की गुणवत्ता और शोध कार्यों की गति में सकारात्मक सुधार देखने को मिलेगा। यह विभाग सभी शिक्षकों के प्रयाश से होगा।
बधाई देने वालों का तांता
प्रभार ग्रहण करने के बाद विभाग में बधाई देने वालों की लंबी कतार लगी रही। इस अवसर पर डॉ. किशोर सुरिन, सहायक प्रो. करम सिंह मुंडा, सहायक प्रो. शकुंतला बेसरा, प्रो. अबनेजर टेटे सहित कई शिक्षक, शोधार्थी और विद्यार्थी उपस्थित रहे। सभी ने डॉ. सोय को बधाई दी और आशा जताई कि उनके नेतृत्व में विभाग न केवल शैक्षणिक और शोध स्तर पर बल्कि सांस्कृतिक गतिविधियों में भी अग्रणी भूमिका निभाएगा।
मुंडारी भाषा के उत्थान की दिशा में पहल
मुंडारी विभाग हमेशा से झारखंड की सांस्कृतिक पहचान और आदिवासी भाषाई धरोहर को सहेजने का कार्य करता आया है। डॉ. सोय ने संकेत दिया कि उनकी प्राथमिकता मुंडारी भाषा को नई पीढ़ी तक पहुँचाने, शोध को विस्तार देने और राष्ट्रीय स्तर पर इसे और अधिक पहचान दिलाने की होगी।
स्थानीय और राष्ट्रीय महत्व
झारखंड की प्रमुख आदिवासी भाषा मुंडारी को राष्ट्रीय स्तर पर नई पहचान दिलाने में विभागाध्यक्ष के रूप में डॉ. सोय की भूमिका अहम साबित होगी। उनके नेतृत्व से विद्यार्थियों को न केवल अकादमिक लाभ मिलेगा बल्कि सांस्कृतिक विरासत को संजोने का अवसर भी मिलेगा। आदिवाणी के माध्यम से भी मुंडारी भाषा को सभी लोंगो तक पहुँचाना है।