राँची : पांच परगना किसान कॉलेज, बुंडू में पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा की जयंती सह विश्व आदिवासी दिवस समारोह बड़े हर्षोल्लास और गरिमा के साथ मनाया गया। समारोह में शिक्षकों, छात्रों और बुद्धिजीवियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही। कार्यक्रम का उद्देश्य न केवल डॉ. रामदयाल मुंडा के व्यक्तित्व और कृतित्व को याद करना था, बल्कि उनके विचारों और आदर्शों को नई पीढ़ी तक पहुँचाना भी था।कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. सुभाष चन्द्र मुंडा थे, जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में कुरमाली विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. भूतनाथ प्रामाणिक, कुरमाली कवि देवेंद्र नाथ महतो और कॉलेज की प्राचार्या डॉ. विनीता कुमारी मंच पर उपस्थित रहीं। अपने संबोधन में मुख्य अतिथि डॉ. सुभाष चन्द्र मुंडा ने कहा कि डॉ. रामदयाल मुंडा महान व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने झारखंड की सभी भाषाओं को समान महत्व दिया और जातीय भेदभाव से ऊपर उठकर समाज को एकजुट करने का कार्य किया। उनके प्रयासों से ही झारखंड में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषाओं की पढ़ाई की शुरुआत हुई। उन्होंने कहा कि डॉ. मुंडा की क्षति अपूरणीय है, लेकिन उनके बताए गए विचारों को आत्मसात करना ही उनकी जयंती का मनाने उद्देश्य है। विशिष्ट अतिथि प्रो. भूतनाथ प्रामाणिक ने कहा कि डॉ. रामदयाल मुंडा सांस्कृतिक आंदोलन के पुरोधा थे। उन्होंने झारखंड की भाषा, कला और संस्कृति को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने का कार्य किया। उनके योगदान ने झारखंडी समाज को आत्मगौरव और स्वाभिमान का भाव प्रदान किया।
इस अवसर पर कुरमाली कवि देवेंद्र नाथ महतो ने डॉ. मुंडा के जीवन पर आधारित गीत प्रस्तुत किया, जिसने कार्यक्रम को भावपूर्ण बना दिया। प्राचार्या डॉ. विनीता कुमारी ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि डॉ. मुंडा का जीवन प्रकृति के साथ गहरे संबंध का प्रतीक है। उन्होंने छात्रों को प्रकृति संरक्षण और संवर्द्धन के लिए सक्रिय भूमिका निभाने को प्रेरित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता मुंडारी विभागाध्यक्ष डॉ. लखींद्र मुंडा ने की, जबकि संचालन राजीव कुमार और धन्यवाद ज्ञापन प्रो. सबरन सिंह मुंडा ने किया। इस अवसर पर प्रो. सुरेश कुमार गुप्ता, डॉ. तारकेश्वर कुमार, डॉ. बासुदेव महतो, प्रो. कृष्णा सिंह मुंडा, प्रो. महावीर मुंडा, प्रो. अरविंद साहू, प्रो. सुबोध शुक्ला, प्रो. संतोष उरांव, प्रो. सुनील कुमार, प्रो. बी.के. मंडल और प्रो. रोहित चौबे सहित कई शिक्षक तथा बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएँ मौजूद रहे। समारोह ने न केवल डॉ. रामदयाल मुंडा की स्मृतियों को जीवित किया, बल्कि आने वाली पीढ़ी को उनकी जीवन-दृष्टि से प्रेरणा लेने का अवसर भी प्रदान किया।