रांची: आदिवासी समाज के महान चिंतक, विद्वान, कलाकार और पूर्व राज्यसभा सांसद पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा की पुण्यतिथि सादगीपूर्ण माहौल में मनाई गई। राजधानी रांची के साथ-साथ उनके पैतृक गाँव दिवरी एवं कई जगहों में श्रद्धांजलि सभा आयोजित हुई, जहाँ ग्रामीणों, बुद्धिजीवियों, कलाकारों और विद्यार्थियों ने उनके योगदान को याद कर पुष्प अर्पित किए। डॉ रामदयाल मुंडा का जीवन सरलता और समर्पण की मिसाल माना जाता है। वे न केवल शिक्षाविद और आदिवासी संस्कृति के संरक्षक थे, बल्कि उन्होंने झारखंड की भाषाओं, लोककला और आदिवासी पहचान को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई। श्रद्धांजलि कार्यक्रम में वक्ताओं ने कहा कि डॉ. मुंडा ने हमेशा जल-जंगल-ज़मीन की रक्षा और सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण पर जोर दिया।
दिवरी गाँव में सामूहिक श्रद्धांजलि
उनके पैतृक गाँव दिवरी में ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से उनकी पुण्यतिथि मनाई। गाँव के बुजुर्गों, युवाओं और महिलाओं ने मिलकर उनके चित्र पर पुष्प अर्पित किए और संकल्प लिया कि डॉ. मुंडा की शिक्षा और विचारों को नई पीढ़ी तक पहुँचाया जाएगा। इस अवसर पर गाँव में पारंपरिक तरीके से श्रद्धांजलि दी गई।
साहित्य, संस्कृति और शिक्षा में योगदान
कार्यक्रम में वक्ताओं ने बताया कि डॉ. मुंडा ने रांची विश्वविद्यालय में जनजातीय एवं क्षेत्रीय भाषा विभाग को नई ऊँचाइयाँ दीं। उन्होंने आदिवासी भाषाओं को अकादमिक जगत में स्थान दिलाया और कई गद्य एवं पद्य की रचनाएँ कीं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए आदिवासी संस्कृति की समृद्ध धरोहर को विश्व पटल पर स्थापित किया।
भविष्य की पीढ़ी के लिए प्रेरणा
युवाओं ने श्रद्धांजलि सभा में कहा कि वे डॉ. मुंडा की राह पर चलते हुए शिक्षा, साहित्य और कला के माध्यम से समाज को नई दिशा देंगे। वक्ताओं ने यह भी कहा कि डॉ. मुंडा का जीवन आदिवासी समाज को अपनी जड़ों और सांस्कृतिक धरोहर से जुड़े रहकर आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है। इस अवसर पर कुंवर सिंह पाहन, मोनिका रानी टूटी, डॉ. जगदीप उरांव और शंकर मुंडा, डॉ अजीत मुंडा, डॉ जुरन सिंह मानकी, बिष्णु समेत कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों ने उनके योगदान को याद किया।